बेगूसराय की धरती पर एक नई समस्या बेगूसराय, बिहार का वह ज़िला जो कभी अपनी हरी-भरी फ़सलों और गंगा के उपजाऊ मैदानों के लिए मशहूर था
आज एक संकट से जूझ रहा है। यहाँ के 30,000 से अधिक ग्रामीणों के लिए रोज़मर्रा का सबसे बड़ा सवाल अब पानी बन गया है।
इसकी वजह है अमेरिकी कंपनी पेप्सिको का वह प्लांट, जो रोज़ाना 12 लाख लीटर पानी निकालकर अपने उत्पाद बना रहा है। सवाल यह है।
क्या औद्योगिक विकास की यह गति स्थानीय समुदाय के अस्तित्व को खतरे में डाल रही है? आइए, इसके हर पहलू को समझें।
1. पेप्सी प्लांट की स्थापना: रोज़गार का सपना या संकट की शुरुआत?
2025 में बेगूसराय के बरौनी इलाके में 1,000 करोड़ रुपये के निवेश से पेप्सिको का प्लांट शुरू हुआ। सरकार और कंपनी ने इसे “विकास की सौगात” बताया—500 से अधिक रोज़गार।
स्थानीय किसानों के लिए बाजार, और इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार का वादा। शुरुआत में ग्रामीणों को भी उम्मीद थी कि यह प्लांट उनकी आर्थिक तस्वीर बदल देगा।
लेकिन हुआ क्या?
- प्लांट को चलाने के लिए भूजल का अंधाधुंध दोहन शुरू हुआ।
- कंपनी को बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति मिली, जिसमें प्रतिदिन 12 लाख लीटर पानी निकालने की इजाज़त थी।
- ग्रामीणों का दावा है कि यह अनुमति बिना पर्यावरणीय अध्ययन (EIA) के दी गई, जो कानूनन ज़रूरी है।
2. पानी का गणित: 12 लाख लीटर/दिन का मतलब क्या है?
आँकड़ों को समझें:
- एक व्यक्ति को प्रतिदिन लगभग 50-100 लीटर पानी चाहिए।
- 12 लाख लीटर पानी से 24,000 लोगों की दैनिक ज़रूरत पूरी हो सकती है।
- प्लांट इतना पानी सिर्फ़ एक उत्पाद (जैसे पेप्सी की बोतलें) बनाने में इस्तेमाल करता है।
स्रोत कहाँ से?
प्लांट भूजल पर निर्भर है। बेगूसराय में पहले से ही भूजल स्तर 10-15 फ़ीट नीचे था, लेकिन पिछले 5 सालों में यह 25-30 फ़ीट तक पहुँच गया। केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के 2022 के आँकड़े बताते हैं कि ज़िले के 60% हैंडपंप सूख चुके हैं।
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3. ग्रामीणों पर प्रभाव: प्यासे खेत, प्यासे लोग
कृषि संकट:
- बरैनी के किसान बताते हैं, “पहले एक कुएँ से 5 एकड़ सिंचाई हो जाती थी। अब दो कुएँ खोदने के बाद भी पानी नहीं मिलता।”
- धान की खेती, जो पानी की मांग करती है, 40% तक घट गई है।
पेयजल की किल्लत:
- महिलाओं को पानी लाने के लिए रोज़ाना 2-3 किमी पैदल चलना पड़ता है, जिससे उनका कीमती समय बर्बाद होता है।
- स्कूल जाने वाले बच्चे पानी भरने में मदद करने को मजबूर हैं।
स्वास्थ्य समस्याएँ:
- गहरे कुएँ का पानी अक्सर खारा या दूषित होता है, जिससे पेट की बीमारियाँ बढ़ी हैं।
4. सरकार और पेप्सिको का रुख: जवाबदेही या खामोशी?
सरकारी तर्क:
प्लांट को सभी मानकों के आधार पर अनुमति दी गई। हम जल प्रबंधन पर काम कर रहे हैं।” — बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड।
हालाँकि, RTI के जवाब में यह स्वीकार किया गया कि EIA रिपोर्ट नहीं बनाई गई थी।
पेप्सिको की प्रतिक्रिया:
- कंपनी का दावा है कि वह “वाटर रिचार्ज” प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है, जैसे तालाबों का निर्माण।
- लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह केवल दिखावा है।
जलसंकट पर भड़के गिरिराज सिंह, बोले –
बिहार के बेगूसराय जिले में जलसंकट दिन-ब-दिन गंभीर होता जा रहा है। इसकी बड़ी वजह मानी जा रही है जिले में स्थित पेप्सी प्लांट, जहां हर दिन लगभग 12 लाख लीटर पानी की खपत हो रही है।
ग्रामीण इलाकों में जलस्तर 12 से 20 फीट तक गिर चुका है, जिससे हैंडपंप और चापाकल तक सूखने लगे हैं। इसी मुद्दे को लेकर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने सख्त रुख अपनाया है।
उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अगर हालात नहीं सुधरे तो पेप्सी प्लांट को बंद करना पड़ेगा। गिरिराज सिंह ने राज्य सरकार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वादा किया था कि गंगा से पानी की व्यवस्था की जाएगी,
लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं हुआ। अब लोग बदबूदार और गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले हैंडपंप से 10 बार में पानी भर जाता था, अब 30 बार चलाने के बाद भी पानी नहीं निकलता।
ग्रामीणों की मांग है कि या तो प्लांट बंद किया जाए या फिर कंपनी अपनी पानी की जरूरतों का वैकल्पिक समाधान निकाले। ये मुद्दा अब सिर्फ पानी का नहीं, बल्कि अस्तित्व का बन चुका है।
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5. विशेषज्ञों की नज़र में: क्या है समाधान?
डॉ. अरविंद कुमार (जल विशेषज्ञ, पटना यूनिवर्सिटी): “उद्योगों को नदियों से सीधे पानी लेने की अनुमति दी जानी चाहिए, न कि भूजल दोहन की। साथ ही, वाटर रिसाइक्लिंग अनिवार्य हो।”
सुनीता नारायण (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट): “बिहार में भूजल नीति लचर है। कंपनियाँ कम दरों पर पानी खरीदकर मनमानी कर रही हैं।”
सफल उदाहरण:
- तमिलनाडु में कोका-कोला ने भूजल दोहन घटाकर वर्षा जल संचयन शुरू किया, जिससे स्थानीय स्तर में सुधार हुआ।
6. राह क्या है? संतुलन की ज़रूरत
- सामुदायिक जल प्रबंधन: ग्राम पंचायतों को भूजल उपयोग की मॉनिटरिंग का अधिकार दिया जाए।
- कंपनी की जिम्मेदारी: पेप्सिको अपनी पानी की ज़रूरत का 50% वर्षा जल या नदियों से पूरा करे।
- सरकारी नीति: भूजल दोहन पर टैक्स लगाकर उस पैसे को जल संरक्षण में लगाया जाए।
पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
Q1: प्लांट को अनुमति क्यों दी गई?
Ans: सरकार ने रोज़गार और निवेश को प्राथमिकता दी, पर्यावरण मानकों की अनदेखी की।
Q2: क्या पेप्सी वाटर रिसाइक्लिंग नहीं कर सकती?
Ans: कर सकती है, लेकिन इससे लागत बढ़ती है। वैश्विक स्तर पर पेप्सिको ने ऐसे प्रोजेक्ट्स शुरू किए हैं, लेकिन भारत में इसे नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।
Q3: ग्रामीणों की मांग क्या है?
Ans: प्लांट का पानी का कोटा घटाया जाए, नए बोरवेल रोके जाएँ, और पीने के पानी की व्यवस्था की जाए।
Q4: क्या यह समस्या सिर्फ़ बेगूसराय की है?
Ans: नहीं, महाराष्ट्र में कोका-कोला और केरल में पेप्सी के प्लांट्स पर भी ऐसे आरोप लगे हैं।
निष्कर्ष: विकास और संरक्षण के बीच सँभल कर चलने की ज़रूरत
बेगूसराय का संकट सिर्फ़ एक प्लांट की कहानी नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। उद्योग और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने के लिए सख्त नीतियों, कॉर्पोरेट जवाबदेही और जनता की जागरूकता की ज़रूरत है।
अगर अब भी नहीं चेते, तो आने वाले सालों में “पानी” के लिए युद्ध सिर्फ़ एक कल्पना नहीं रह जाएगी।
यह न्यूज बेगूसराय के ग्रामीणों की पीड़ा को उजागर करने के साथ-साथ व्यापक समाधानों की ओर भी इशारा करता है। सच्चा विकास तभी संभव है जब प्रकृति और मानव की ज़रूरतें साथ-साथ चलें।
Sahi baat hai jaldi se jaldi ye samaaiya ka samadhan hona chaiye